जबलपुर। सोनिया मीना कलेक्टर नर्मदापुरम द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में जमीनी विवाद के प्रकरण में खुद उपस्थित न होकर जज को सीधे लिखी गई चिठ्ठी पर फटकार लगी है। हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट में कलेक्टर की चिठ्ठी लेकर पहुंचे एडीएम और तहसीलदार पहुंचे थे। जस्टिस अहलूवालिया ने कलेक्टर द्वारा लिखे गए पत्र को दुस्साहसपूर्ण कदम बताया है। जस्टिस अहलूवालिया ने प्रकरण के आदेश में मुख्य सचिव मध्य प्रदेश शासन को निर्देश दिए है कि कलेक्टर नर्मदापुरम सोनिया मीना द्वारा हाईकोर्ट के जज को सीधे तौर पर चिठ्ठी लिखकर भेजी गई है इनके खिलाफ एक महीने में एक्शन लीजिए। कोर्ट ने सीएस से 30 अगस्त तक रिपोर्ट मांगी है। इसके साथ ही अपर कलेक्टर देवेंद्र कुमार सिंह और सिवनी मालवा तहसीलदार राकेश खजूरिया को काम का जरा भी ज्ञान नहीं होना बताते हुए 6-6 महीने की टे्रेनिंग पर भेजने व अर्ध-न्यायिक और मजिस्ट्रियल शक्तियां तत्काल छीनने के निर्देश दिए है।
यह था मामला
नर्मदापुरम में रहने वाले प्रदीप अग्रवाल और नितिन अग्रवाल का जमीन को लेकर विवाद था। विवाद नहीं सुलझा तो इसे लेकर प्रदीप अग्रवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने नामांतरण की प्रक्रिया नए सिरे से करने का आदेश दिया था। आदेश के बाद जब वापस जमीन नामांतरण का केस नर्मदापुरम गया तो वहां पर नामांतरण की कार्यवाही नहीं करके सिवनी मालवा तहसीलदार ने दूसरे पक्ष नितिन अग्रवाल से बंटवारे का आवेदन अभिलेख में लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी, जबकि हाईकोर्ट का आदेश था कि इसमें नामांतरण करना है, न कि बंटवारा। इस मामले में पक्षकार प्रदीप अग्रवाल ने रिवीजन अर्जी अपर कलेक्टर को सौंपा और बताया कि तहसीलदार की ये कार्यवाही हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन है, जिसे सुधारा जाए। अपर कलेक्टर ने भी तहसीलदार की कार्यवाही को सही ठहराया और कहा कि हाईकोर्ट के निर्देश का पालन हो रहा है। जिसके चलते मामला दोबारा हाईकोर्ट पहुंचा जहां याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ गुलाटी ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट का आदेश नामांतरण का था, जबकि तहसीलदार बंटवारा कर रहे हैं।
प्रकरण की सुनवाई में कलेक्टर सोनिया मीना स्वयं उपस्थित नहीं हुई थी। उन्होने पचमढ़ी में आयोजित होने वाले मेले की तैयारी में कर्मचारियों की जिप्सी खाई में गिरने और धूपगढ़ में लैंड स्लाइड होने की व्यवस्था देखने के कारण एडीएम और तहसीलदार को चिठ्ठी लेकर हाईकोर्ट भेजा था। सुनवाई के दौरान एडीएम ने सीधे तौर पर कलेक्टर की चिठ्ठी जज को दे दी थी। जबकि कोई भी अधिकारी अपनी बात सरकारी वकील के माध्यम से कोर्ट में रख सकता है सीधे जज को चिठ्ठी नहीं भेज सकता है। जिस पर जस्टिस अहलूवालिया ने एडीएम पर नाराजगी जताई थी।
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